काली खांसी के कारण क्या हैं। Causes of Whooping Cough in Hindi.
अक्टूबर 23, 2020 Lifestyle Diseases 3671 ViewsWhooping Cough Meaning in Hindi.
काली खांसी को दूसरे शब्दो में कुकर खांसी कहा जाता है। यह श्वसन तंत्र में होने वाला संक्रमण है जो अत्यधिक संक्रामक होता है। काली खांसी आने पर व्यक्ति को कफ या बलगम आने लगता है। इसके अलावा श्वास लेने में वूप जैसी ध्वनि सुनाई देने लगती है। काली खासी किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है। काली खांसी की समस्या तुरंत व्यक्ति पर अपना असर नहीं दिखाता है बल्कि 3 से 6 हफ्तों में प्रभाव पड़ने लगता हैं। जिन बच्चों को बचपन में काली खांसी का टिका लगा हुआ रहता है, उनको आगे काली खांसी का जोखिम नहीं रहता है। लेकिन जिन लोगो को बचपन में काली खांसी का टीकाकरण नहीं हुआ रहता है उनको काली खांसी हो सकता है। काली खांसी अक्सर कमजोर इम्म्युंटी वाले लोगो अधिक होती है, इसलिए कमजोर बच्चों की मृत्यु हो जाती है। गर्भवती महिला के पास वाले सभी लोगो को काली खांसी का टिका लगवा लेना चाहिए। चलिए आपको विस्तार से काली खांसी के कारण बारे में विस्तार से बताते हैं।
- काली खांसी के कारण क्या हैं ? (What are the Causes of Whooping Cough in Hindi)
- काली खांसी के लक्षण क्या हैं ? (What are the Symptoms of Whooping Cough in Hindi)
- काली खांसी का उपचार क्या हैं ? (What are the Treatments for Whooping Cough in Hindi)
- काली खांसी से बचाव कैसे करें ? (Prevention of Whooping Cough in Hindi)
काली खांसी के कारण क्या हैं ? (What are the Causes of Whooping Cough in Hindi)
- काली खांसी बोर्डटेला पर्टुसिसि जीवाणु के कारण होता है। यह जीवाणु संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने पर हवा में फ़ैल जाते है यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इन बूंदो के संपर्क में आता है तो संक्रमित हो जाता है। यह संक्रमण व्यक्ति के फेफड़ो में जाकर बैठ जाती है और संक्रमण फ़ैलाने लगती है।
- बचपन में टिका लगने के बाद समय के साथ इसका असर ख़त्म हो जाता है। इसलिए संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है। जो बच्चे 12 उम्र तक कोई टिका न लगवाए हो तो उनको संक्रमण का खतरा अधिक हो जाता है और कुछ दुर्लभ स्तिथि में मृत्यु भी हो सकती है। (और पढ़े – कोरोना वायरस क्या है)
काली खांसी के लक्षण क्या हैं ? (What are the Symptoms of Whooping Cough in Hindi)
काली खांसी के लक्षण तुरंत नजर नहीं आते है। लक्षण नजर आने में कम से कम 7 से 10 दिन लगते है या अधिक भी हो सकता है। हालांकि काली खांसी के लक्षण मामूली जैसे जुखाम की तरह दिखते है। इसके अलावा कुछ और लक्षण हो सकते है।
- जैसे बुखार आना।
- बलगम आना।
- आंख लाल होना।
- नाक की नली बंद होना।
- कुछ लोगो में श्वास लेने पर वूप की आवाज आती है। कुछ बच्चों में खांसी नहीं आती है बल्कि श्वास लेने में परेशानी आती है।
- अगर आपके बच्चें में यह लक्षण नजर आ रहे है तो चिकिस्तक के पास जाएं।
- सांस लेने में वूप की आवाज आना।
- शरीर का रंग नीला पड़ना।
- सांस न ले पाना।
- उल्टी आना। (और पढ़े – कोरोना वायरस के लक्षण)
काली खांसी का उपचार क्या हैं ? (What are the Treatments for Whooping Cough in Hindi)
काली खांसी से पीड़ित बच्चों को अस्पताल में भर्ती करवाया जाता है, क्योंकि छोटे बच्चों के लिए बहुत गंभीर समस्या होती है उनके जान का जोखिम हो जाता है। यदि बच्चा कुछ तरल पदार्थ या खाना खा नहीं पा रहा है तो चिकिस्तक नसों के माध्यम से सीधे तरल पदार्थ भेज सकते है। संक्रमण से बचने के लिए बच्चें को अलग कमरे में रखा जाता है। हालांकि बड़े बच्चो और वयस्कों को घर पर उपचार कर दिया जाता है।
चिकिस्तक कुछ एंटीबायोटिक दवाएं के जरिये काली खांसी के जीवाणु को समाप्त किया जाता है। प्रभावित लोगो को दवाएं दी जाती है। बलगम को कम करने के लिए कोई दवा नहीं है। इसलिए बिना चिकिस्तक की सलाह से कोई दवा नहीं लेनी चाहिए।
कुछ अन्य उपाय अपनी देखभाल के लिए कर सकते हैं।
- ऐसे कमरे में आराम करे जहा पर शांति, अंधेरा व ठंडक हो।
- यदि काली खांसी आ रही है, तो घर में मास्क लगाए रखे ताकि अन्य लोगो संक्रमण न हो।
- घर में साफ सफाई रखे व तंबाकू व आग का धुआँ न होने दे क्योंकि यह सब हवा को दूषित करते है और खांसी दिलाने का कारण बनते है।
- खांसने के बाद उल्टी की समस्या न हो इसलिए हल्का भोजन करें।
- अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करे जैसे सुप, फलो का रस, पानी आदि। (और पढ़े – डिहाइड्रेशन क्या है)
काली खांसी से बचाव कैसे करें ? (Prevention of Whooping Cough in Hindi)
काली खांसी से बचने का सबसे अच्छा उपाय है चिकिस्तक की सलाह लेना चाहिए। अक्सर चिकिस्तक डिप्थेरिया व टिटनस का टीकाकरण साथ में लगाते है।
- टीकाकरण की प्रक्रिया बचपन से शुरू की जाती है। इन टीको में 5 टिके लगाए जाते है, लेकिन बच्चों के उम्र के अनुसार जैसे 2, 4, 6 महीने में और 15 से 18 महीने, 4 से 6 साल के उम्र वाले बच्चों को लगाया जाता है। हालांकि इन टीको का दुष्परिणाम भी होता है, जिनमे बच्चों को अक्सर बुखार, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन होने लगता है। हालांकि बूस्टर टिके भी होते है जो 11 की उम्र होने के बाद टिके का असर समाप्त हो जाता है। इसलिए काली खांसी, डिप्थेरिया व टिटनस से बचने के लिए बूस्टर के इंजेक्शन लगवा लेते है।
- व्यस्क लोगो को 10 साल में एक बार टिटनेस का टिका लगवा लेना चाहिए ताकि काली खांसी न हो। इसके अलावा गर्भवती महिला को 27 से 36 हफ्तों में पर्टोसीस का टिका लगवा लेना चाहिए। टिका लगवाने से शुरुवात में बच्चे को काली खांसी से बचाव कर सकते है। (और पढ़े – नवजात शिशु की देखभाल कैसे करें)
काली खांसी की समस्या के बारे में अधिक जानकारी व उपचार के लिए संक्रामक रोग चिकिस्तक (Infection Disease Specialist) से संपर्क करें।
हमारा उद्देश्य आपको रोगो के प्रति जानकारी देना है हम आपको किसी तरह के दवा, उपचार, सर्जरी की सलाह नहीं देते है। आपको अच्छी सलाह केवल एक चिकिस्तक दे सकता है क्योंकि उनसे अच्छा दूसरा नहीं होता है।
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